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शे'र
सर-ओ-बर्ग-ए-ख़ुशी ऐ गुल-बदन तुझ बिन कहाँ मुझ कोगुलिस्तान-ए-दिल आया फ़ौज-ए-ग़म की पाएमाली में
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
कम नहीं गुलशन में शबनम गुल-बदन गुल-पैरहनग़ुस्ल कर मल-मल के गर आब-ए-रवाँ मिलता नहीं
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
बाँद कर गुलनार चीरा गुल-बदन जाता है बाग़आज ख़ातिर में तिरे बुलबुल की मिस्मारी है क्या
तुराब अली दकनी
शे'र
बुलबुल सिफ़त ऐ गुल-बदन इस बाग़ में हर सुब्हतेरी बहारिस्तान का दीवाना हूँ दीवाना हूँ
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
ऐ 'तुराब' जब गुल-बदन के दर्द सूँ गिर्यां कियादामन-ए-गुल पर मिरा हर अश्क दुर्दाना हुआ
तुराब अली दकनी
शे'र
अभी तो लग न चलना था 'असर' उस गुल-बदन के साथकोई दिन देखना था ज़ख़्म-ए-दिल बे-तर्ह आला था
ख़्वाजा मीर असर
शे'र
नामा-बर ख़त दे के उस को लफ़्ज़ कुछ मत बोलियोदम-ब-ख़ुद रहियो तेरी तक़रीर की हाजत नहीं