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शे'र
'आरिफ़ा' है हक़ यही बस ग़ैर-ए-हक़ कुछ भी न जानपी मय-ए-वहदत यहाँ ताख़ीर की हाजत नहीं
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
कहीं है अ’ब्द की धुन और कहीं शोर-ए-अनल-हक़ हैकहीं इख़्फ़ा-ए-मस्ती है कहीं इज़हार-ए-मस्ती है
बेदम शाह वारसी
शे'र
ख़्वाब 'बेदार' मुसाफ़िर के नहीं हक़ में ख़ूबकुछ भी है तुझ को ख़बर हम-सफ़राँ जाते हैं
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
क्यूँ-कर न क़ुर्ब-ए-हक़ की तरफ़ दिल मिरा कीजिएगर्दन असीर-ए-हल्क़ा-ए-हबल-उल-वरीद है
बेदम शाह वारसी
शे'र
आरज़ू लाज़िम है वज्ह-ए-आरज़ू हो या न होइल्तिफ़ात उस काफ़िर-ए-ख़ुद-बीं की ख़ूँ हो या न हो
हसरत मोहानी
शे'र
बेदम शाह वारसी
शे'र
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
साग़र शराब-ए-इ'श्क़ का पी ही लिया जो हो सो होसर अब कटे या घर लुटे फ़िक्र ही क्या जो हो सो हो