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अदब से सर झुका कर क़ासिद उस के रू-ब-रू जानानिहायत शौक़ से कहना पयाम आहिस्ता आहिस्ता
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
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अब्दुल हादी काविश
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अर्श गयावी
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इ'ल्म वालों को शहादत का सबक़ तू ने दियामर के भी ज़िन्दा रहे इंसाँ ये हक़ तू ने दिया
मुज़फ़्फ़र वारसी
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वही इंसान है 'एहसाँ' कि जिसे इल्म है कुछहक़ ये है बाप से अफ़्ज़ूँ रहे उस्ताद का हक़
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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वही इंसान है 'एहसाँ' कि जिसे इ’ल्म है कुछहक़ ये है बाप से अफ़्ज़ूँ रहे उस्ताद का हक़
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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वही इंसान है 'एहसाँ' कि जिसे इल्म है कुछहक़ ये है बाप से अफ़्ज़ूँ रहे उस्ताद का हक़
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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ये आदाब-ए-मोहब्बत है तिरे क़दमों पे सर रख दूँये तेरी इक अदा है फेर कर मुँह मुस्कुरा देना
अब्दुल हादी काविश
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कमाल-ए-इ’ल्म-ओ-तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल हैतिरा इदराक मुश्किल था तिरा इदराक मुश्किल है
सीमाब अकबराबादी
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मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा,मुझे ज़िंदगी का अलम नहींजिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
शकील बदायूँनी
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ये आ’लम है ‘रियाज़’ एक एक क़तरा को तरसता हूँहरम में अब ख़ुदा जाने भरी बोतल कहाँ रख दी
रियाज़ ख़ैराबादी
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पढ़ पढ़ इ’ल्म हज़ार कताबाँ आ’लिम होए भारे हूहर्फ़ इक इ’श्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू