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शे'र
ग़ज़ब की चाल गुलशन में चला है बाग़बाँ 'मोहसिन'इसी का ये नतीज: है कि पामाल-ए-सऊबत हूँ
शाह मोहसिन दानापुरी
शे'र
कब दिमाग़ इतना कि कीजे जा के गुल-गश्त-ए-चमनऔर ही गुलज़ार अपने दिल के है गुलशन के बीच
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
मन पाया है उस ने दिल मेरा काबा है घर अल्लाह का हैअब खोद के उस को फिकवा दे वो बुत न कहीं बुनियाद सती
ग़ुलाम नक्शबंद सज्जाद
शे'र
तुम को कहते हैं कि आशिक़ की फ़ुग़ाँ सुनते होये तो कहने ही की बातें हैं कहाँ सुनते हो
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ऐ चारागर-ए-ख़ुश-फ़हम ज़रा कुछ अक़्ल की ले कुछ होश की लेबीमार-ए-मोहब्बत भी तुझ से नादान कहीं अच्छा होगा
कामिल शत्तारी
शे'र
यारब जो ख़ार-ए-ग़म हैं जला दे उन्हीं के तईंजो ग़ुंचा-ए-तरब हैं खिला दे उन्हों के तईं