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शे'र
हर आँख की तिल में है ख़ुदाई का तमाशाहर ग़ुन्चा में गुलशन है हर इक ज़र्रा में सहरा
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
शे'र
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
शे'र
ढ़ूंढ़े असरार-ए-ख़ुदा दिल ने जो अंधा बन कररह गया आप ही पहलू में मुअ’म्मा बन कर
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
शे'र
मुझसे अव़्वल न था कुछ दह्र में जुज़ ज़ात-ए-ख़ुदाग़ैर-ए-हक़ देखा तो फिर कुछ न रहा मेरे बा’द