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शे'र
मुझसे अव़्वल न था कुछ दह्र में जुज़ ज़ात-ए-ख़ुदाग़ैर-ए-हक़ देखा तो फिर कुछ न रहा मेरे बा’द
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
शे'र
फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू-ए-दहर मत खा मर्द-ए-आ'क़िल होसमझ आतिश-कदा इस गुलशन-ए-शादाब-ए-दुनिया को
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
अगर चाहूँ निज़ाम-ए-दहर को ज़ेर-ओ-ज़बर कर दूँमिरे जज़्बात का तूफ़ाँ ज़मीं से आसमाँ तक है
वली वारसी
शे'र
कहूँ क्या कि गुलशन-ए-दहर में वो अजब करिश्मे दिखा गएकहीं आशिक़ों को मिटा गए कहीं लन-तरानी सुना गए