आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "inshaye jami abdul rahman jami ebooks"
शेर के संबंधित परिणाम "inshaye jami abdul rahman jami ebooks"
शे'र
फूले नहीं समाते हो जामा में मिस्ल-ए-गुलपहुँचा है तुम को आज कसो का पयाम-ए-ख़ास
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
अपने हाथों मेहंदी लगाई माँग भी मैं ने देखो सजाईआए पिया घर रिम-झिम बरसे जाओ बता दो सावन को
अब्दुल हादी काविश
शे'र
आकाश की जगमग रातों में जब चाँद सितारे मिलते हैंदिल दे दे सनम को तू भी ये क़ुदरत के इशारे मिलते हैं
अब्दुल हादी काविश
शे'र
तू लाख करे इंकार मगर बातों में तिरी कौन आता हैईमान मिरा ये मेरा यक़ीं तू और नहीं मैं और नहीं
अब्दुल हादी काविश
शे'र
अब तो मैं राहरव-मुल्क-ए-अ’दम होता हूँतिरा हर हाल में हाफ़िज़ है ख़ुदा मेरे बा’द
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
शे'र
जिस्म का रेशा रेशा मचले दर्द-ए-मोहब्बत फ़ाश करेइ’शक में 'काविश' ख़ामोशी तो सुख़नवरी से मुश्किल है
अब्दुल हादी काविश
शे'र
चाँद सा मुखड़ा उस ने दिखा कर फिर नैनाँ के बाँड़ चला करसाँवरिया ने बीच-बजरिया लूट लियो इस निर्धन को
अब्दुल हादी काविश
शे'र
जा को कोई पकड़े तो कैसे काम करत है नज़र न आएचुपके चुपके सेंध लगावे दिन होवे या अँधेरी रतियाँ
अब्दुल हादी काविश
शे'र
आग लगी वो इशक की सर से मैं पाँव तक जलाफ़र्त-ए-ख़ुशी से दिल मिरा कहने लगा जो हो सो हो
अब्दुल हादी काविश
शे'र
चाँद सा मुखड़ा उस ने दिखा कर फिर नैनाँ के बाण चला करसँवरिया ने बीच-बजरिया लूट लियो इस निर्धन को
अब्दुल हादी काविश
शे'र
उठ के अँधेरी रातों में हम तुझ को पुकारा करते हैंहर चीज़ से नफ़रत हम को हुई हम जन्नत-ए-फ़र्दा भूल गए
अब्दुल हादी काविश
शे'र
उठ के अँधेरी रातों में हम तुझ को पुकारा करते हैंहर चीज़ से नफ़रत हम को हुई हम जन्नत-ए-फ़र्दा भूल गए