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महफ़िल इ’श्क़ में जो यार उठे और बैठेहै वो मलका कि सुबुक-बार उठे और बैठे
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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कहियो ऐ क़ासिद पयाम उस को कि तेरे हिज्र सेजाँ-ब-लब पहुँचा नहीं आता है तू याँ अब तलक
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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इ’श्क़ अदा-नवाज़-ए-हुस्न हुस्न करिश्मा-साज़-ए-इश्क़आज से क्या अज़ल से है हुस्न से साज़-बाज़-ए-इ’श्क़
बेदम शाह वारसी
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बेदम शाह वारसी
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हुस्न-मह्व-ए-रंग-ओ-बू है इ’श्क़ ग़र्क़-ए-हाय-ओ-हूहर गुलिस्ताँ उस तरफ़ है हर बयाबाँ इस तरफ़
ज़हीन शाह ताजी
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देखो कू-ए-यार में मत हज़रत-ए-दिल राह-ए-अश्कइंतिज़ार-ए-क़ाफ़िलः मंज़िल पे क्यूँ खींचे हैं आप
शाह नसीर
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लैल-ओ-नहार चाहे अगर ख़ूब गुज़रे 'इ’श्क़'कर विर्द उस के नाम को तू सुब्ह-ओ-शाम का
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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पहुँचा है जब से इ’श्क़ का मुझ को सलाम-ए-ख़ासदिल के नगीं पे तब से खुदाया है नाम-ए-ख़ास
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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कुछ आरज़ू से काम नहीं 'इ’श्क़' को सबामंज़ूर उस को है वही जो हो रज़ा-ए-गुल