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शे'र
तुम न जाओ ज़ीनत-ए-गुलशन तुम्हारे दम से हैतुम चले जाओगे तो गुलशन में क्या रह जाएगा
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
सँभल जाओ चमन वालो ख़तर है हम न कहते थेजमाल-ए-गुल के पर्दे में शरर है हम न कहते थे
वासिफ़ अली वासिफ़
शे'र
कब दिमाग़ इतना कि कीजे जा के गुल-गश्त-ए-चमनऔर ही गुलज़ार अपने दिल के है गुलशन के बीच