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हम ऐसे ग़र्क़-ए-दरिया-ए-गुन: जन्नत में जा निकलेतवान-ए-लत्मः-ए-मौज-ए-शफ़ाअत हो तो ऐसी हो
आसी गाज़ीपुरी
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तलाश-ए-बुत में मुझ को देख कर जन्नत में सब बोलेये काफ़िर क्यूँ चला आया मुसलमानों की बस्ती में
मुज़्तर ख़ैराबादी
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'नसीर'-ए-खस्तः-जाँ जन्नत से इस कूचे को कब बदलेब अज़ ज़िल्ल-ए-हुमा है यार की दीवार का साया
शाह नसीर
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क्यूँ न दोज़ख़ भी हो जन्नत मुझे जब ख़ुद वो कहेइस गुनहगार को ले जाओ ये मग़्फ़ूर नहीं
इरफ़ान इस्लामपुरी
शे'र
मिला क्या हज़रत-ए-आदम को फल जन्नत से आने कान क्यूँ उस ग़म से सीन: चाक हो गंदुम के दाने का
शाह नसीर
शे'र
हमें निस्बत है जन्नत से कि हम भी नस्ल-ए-आदम हैंहमारा हिस्सा 'राक़िम' है इरम में हौज़-ए-कौसर में
राक़िम देहलवी
शे'र
वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सर-ग़श्तः-ए-तसनीम-ओ-जन्नत होमयस्सर जिस को सैर-ए-ताज और जमुना का साहिल है
सीमाब अकबराबादी
शे'र
बाग़-ओ-बहिश्त-ओ-हूर-ओ-जन्नत अबरारों को कीजिए इनायतहमें नहीं कुछ उस की ज़रूरत आप के हम दीवाने हैं
निसार अकबराबादी
शे'र
गुलशन-ए-जन्नत की क्या परवा है ऐ रिज़वाँ उन्हेंहैं जो मुश्ताक़-ए-बहिश्त-ए-जावेदान-ए-कू-ए-दोस्त
अमीर मीनाई
शे'र
गुलशन-ए-जन्नत की क्या परवा है ऐ रिज़वाँ उन्हेंहैं जो मुश्ताक़-ए-बहिश्त-ए-जावेदान-ए-कू-ए-दोस्त
अमीर मीनाई
शे'र
लाया तुम्हारे पास हूँ या पीर अल-ग़ियासकर आह के क़लम से मैं तहरीर अल-ग़ियास