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अर्श गयावी
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ये दिल में है जो घबराहट ये आँखों में है जो आँसूइस एहसाँ को भी बाला-ए-करम महसूस करता हूँ
बहज़ाद लखनवी
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अकबर वारसी मेरठी
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मक़्दूर क्या जो कह सुकूँ कुछ रम्ज़-ए-इ’श्क़ कोजूँ शम्अ' हूँ अगरचे सरापा ज़बान-ए-इ’श्क़
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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जहान-ए-बे-ख़ुदी में मस्ती-ए-वहदत जो ले जायेफ़रिश्ते लें क़दम मेरे वो हूँ मैं रिंद-ए-मस्तान:
इब्राहीम आजिज़
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साग़र शराब-ए-इ'श्क़ का पी ही लिया जो हो सो होसर अब कटे या घर लुटे फ़िक्र ही क्या जो हो सो हो
अब्दुल हादी काविश
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फ़क़ीर-ए-‘कादरी’ जो देखते हैं चश्म-ए-बीना सेतो बंदे को ख़ुदा कहने की जुर्अत आ ही जाती है
फ़क़ीर क़ादरी
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किया जो मुझ तरफ़ गुल-रू नज़र आहिस्ता आहिस्तावो पहुँची बुलबुल-ए-दिल कूँ ख़बर आहिस्ता आहिस्ता
तुराब अली दकनी
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यारब जो ख़ार-ए-ग़म हैं जला दे उन्हीं के तईंजो ग़ुंचा-ए-तरब हैं खिला दे उन्हों के तईं