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शे'र
अमीर मीनाई
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अमीर मीनाई
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कूचे में तिरे ऐ जान-ए-ग़ज़ल ये राज़ खुला हम पर आ करग़म भी तो इनायत है तेरी हम ग़म का मुदावा भूल गए
अब्दुल हादी काविश
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कामिल शत्तारी
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उ’ज़्र कुछ मुझको नहीं क़ातिल तू बिस्मिल्लाह करसर ये हाज़िर है मगर एहसान मेरे सर न हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
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कूचा-ए-क़ातिल में मुझको घेर कर लाई है येजीते जी जन्नत में पहुंचा दे क़ज़ा ऐसी तो हो
कैफ़ी हैदराबादी
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कूचा-ए-क़ातिल में मुझको घेर कर लाई है येजीते जी जन्नत में पहुंचा दे क़ज़ा ऐसी तो हो
कैफ़ी हैदराबादी
शे'र
अगर चाहूँ निज़ाम-ए-दहर को ज़ेर-ओ-ज़बर कर दूँमिरे जज़्बात का तूफ़ाँ ज़मीं से आसमाँ तक है
वली वारसी
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जैसी चाहे कोशिशें कर वाइ'ज़-ए-बातिन-ख़राबतेरे रहने को तो जन्नत में मकाँ मिलता नहीं