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शे'र
कब दिमाग़ इतना कि कीजे जा के गुल-गश्त-ए-चमनऔर ही गुलज़ार अपने दिल के है गुलशन के बीच
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
अफ़क़र मोहानी
शे'र
अफ़क़र मोहानी
शे'र
'नसीर'-ए-खस्तः-जाँ जन्नत से इस कूचे को कब बदलेब अज़ ज़िल्ल-ए-हुमा है यार की दीवार का साया
शाह नसीर
शे'र
ख़ुदा जाने मिरी मिट्टी ठिकाने कब लगे 'मुज़्तर'बहुत दिन से जनाज़ा कूचा-ए-क़ातिल में रक्खा है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ख़ुदा जाने मिरी मिट्टी ठिकाने कब लगे 'मुज़्तर'बहुत दिन से जनाज़ा कूचा-ए-क़ातिल में रक्खा है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ख़ुदा जाने मिरी मिट्टी ठिकाने कब लगे 'मुज़्तर'बहुत दिन से जनाज़ः कूचा-ए-क़ातिल में रक्खा है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
इलाही रंग ये कब तक रहेगा हिज्र-ए-जानाँ मेंकि रोज़-ए-बे-दिली गुज़रा तो शाम-ए-इंतिज़ार आई
हसरत मोहानी
शे'र
जल्वे से तिरे है कब ख़ाली फल फूल फली पत्ता डालीहै रंग तिरा गुलशन गुलशन सुब्हान-अल्लाह सुब्हान-अल्लाह