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शे'र
सुरूर-ओ-कैफ़ का नग़्मा ग़म-ओ-अंदोह का नौहा
तिलिस्म-ए-ज़ीस्त की सरगम कभी कुछ है कभी कुछ है
अब्दुल हादी काविश
शे'र
ख़ुशी से चोट खाने का मज़ा या कैफ़-ए-जाँ-सोज़ी
कोई जाँ-सोज़ परवाना या कोई दिल-जला जाने
बेख़ुद सुहरावरदी
शे'र
जिलाया मार कर क़ातिल ने मैं इस क़त्ल के क़ुर्बां
हुआ दाख़िल वो ख़ुद मुझ में मैं ऐसे दख़्ल के क़ुर्बां
मरदान सफ़ी
शे'र
तिश्ना-लब छोड़ा मुझे क़ातिल ने वक़्त-ए-इम्तिहाँ
रूह मेरी आब-ए-ख़ंजर को तरसती रह गई
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
जो अ’ज़्म-ए-क़त्ल है आँखों पे पट्टी बाँध ली क़ातिल
मबादा तुझ को रहम आ जाए मेरी ना-तवानी पर
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
उ’ज़्र कुछ मुझको नहीं क़ातिल तू बिस्मिल्लाह कर
सर ये हाज़िर है मगर एहसान मेरे सर न हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
शे'र
अहक़र बिहारी
शे'र
शकील बदायूँनी
शे'र
क़द-ए-ख़म है गरेबाँ-गीर कंठा बन के क़ातिल का
मगर बे-ताबी-ए-ज़ौक़-ए-शहादत हो तो ऐसी हो