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शे'र
गर तालिब-ए-अल्लाह हुआ है इ’श्क़ को पहले पैदा करप्रेम की चक्की में दिल अपना पीस पिसा कर मैदा कर
कवि दिलदार
शे'र
कूचा-ए-क़ातिल में मुझको घेर कर लाई है येजीते जी जन्नत में पहुंचा दे क़ज़ा ऐसी तो हो
कैफ़ी हैदराबादी
शे'र
कूचा-ए-क़ातिल में मुझको घेर कर लाई है येजीते जी जन्नत में पहुंचा दे क़ज़ा ऐसी तो हो
कैफ़ी हैदराबादी
शे'र
दिल फंसा कर ज़ुल्फ़ में ख़ुद है पशेमानी मुझेदह्र में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा कहती है ज़िंदानी मुझे
सादिक़ लखनवी
शे'र
तैरता है फूल बन कर बह्र-ए-ग़म में दिल मिराकिस तरह डूबे वो कश्ती जिसमें कुछ लंगर न हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
शे'र
तैरता है फूल बन कर बह्र-ए-ग़म में दिल मिराकिस तरह डूबे वो कश्ती जिसमें कुछ लंगर ना हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
शे'र
कर दिया है बे-ख़ुदी ने आज इस क़ाबिल मुझेअपने पहलू में लिए लेती है ख़ुद मंज़िल मुझे
पंडित शाएक़ वारसी
शे'र
बाँद कर गुलनार चीरा गुल-बदन जाता है बाग़आज ख़ातिर में तिरे बुलबुल की मिस्मारी है क्या