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मुझे रास आएं ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअ’तेंउन्हें ए’तबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ए’तबार-ए-सितम नहीं
शकील बदायूँनी
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मुझे रास आएं ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअ’तेंउन्हें ए’तबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ए’तबार-ए-सितम नहीं
शकील बदायूँनी
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जब इ’श्क़ आ’शिक़ बेबाक करे तब पावे अपने मतलब कोतन मन को मार के ख़ाक करे तब पावे अपने मतलब को
कवि दिलदार
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इतनी बात न बूझी लोगाँ आप निभाता करी सो कुएइ’ल्म क़ुदरत जिस थोरा होवे की मजबूर विचारा होए
शाह अली जीव गामधनी
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मिरी आरज़ू के चराग़ पर कोई तब्सिरा भी करे तो क्याकभी जल उठा सर-ए-शाम से कभी बुझ गया सर-ए-शाम से
अज़ीज़ वारसी देहलवी
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मिरी आरज़ू के चराग़ पर कोई तब्सिरा भी करे तो क्याकभी जल उठा सर-ए-शाम से कभी बुझ गया सर-ए-शाम से
अज़ीज़ वारसी देहलवी
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जिस्म का रेशा रेशा मचले दर्द-ए-मोहब्बत फ़ाश करेइ’शक में 'काविश' ख़ामोशी तो सुख़नवरी से मुश्किल है
अब्दुल हादी काविश
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वफ़ादारी की सूरत में जफ़ा-कारी का नक़्शा तूये नैरंग-ए-मोहब्बत है कि ऐसा मैं हूँ वैसा तू