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शे'र
ख़्वाब 'बेदार' मुसाफ़िर के नहीं हक़ में ख़ूबकुछ भी है तुझ को ख़बर हम-सफ़राँ जाते हैं
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
चड़्ह चन्नां ते कर रुशनाई काळी रात हिजर दीशम्हा जमाल कमाल सज्जन दी आ घर बाल असाडे
मियां मोहम्मद बख़्श
शे'र
यारब जो ख़ार-ए-ग़म हैं जला दे उन्हीं के तईंजो ग़ुंचा-ए-तरब हैं खिला दे उन्हों के तईं
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
कब दिमाग़ इतना कि कीजे जा के गुल-गश्त-ए-चमनऔर ही गुलज़ार अपने दिल के है गुलशन के बीच
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
बढ़ के तूफ़ाँ में सहारा मौज-ए-तूफ़ाँ क्यूँ न देमेरी कश्ती का ख़ुदा है ना-ख़ुदा कोई नहीं
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
जुज़ तेरे नहीं ग़ैर को रह दिल के नगर मेंजब से कि तिरे इश्क़ का याँ नज़्म-ओ-नसक़ है
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
हसीनों में वो गुल सब से जुदा है अपनी रंगत काअदा का नाज़ का इश्वः का शोख़ी का शरारत का
मोहम्मद अकबर वार्सी
शे'र
दूर हो गर शाम्मा से तेरे ग़फ़लत का ज़ुकामतू उसी की बू को पावे हर गुल-ओ-सौसन के बीच
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
कहीं है अ’ब्द की धुन और कहीं शोर-ए-अनल-हक़ हैकहीं इख़्फ़ा-ए-मस्ती है कहीं इज़हार-ए-मस्ती है
बेदम शाह वारसी
शे'र
याद में उस क़द-ओ-रुख़्सार के ऐ ग़म-ज़दगाँजा के टुक बाग़ में सैर-ए-गुल-ओ-शमशाद करो
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
तुम को कहते हैं कि आशिक़ की फ़ुग़ाँ सुनते होये तो कहने ही की बातें हैं कहाँ सुनते हो