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शे'र
जब इ’श्क़ आ’शिक़ बेबाक करे तब पावे अपने मतलब कोतन मन को मार के ख़ाक करे तब पावे अपने मतलब को
कवि दिलदार
शे'र
गर तालिब-ए-अल्लाह हुआ है इ’श्क़ को पहले पैदा करप्रेम की चक्की में दिल अपना पीस पिसा कर मैदा कर
कवि दिलदार
शे'र
गूढ़ ज़ुल्मात अंधेर ग़ुबाराँ राह ने ख़ौफ़ ख़तर दे हूआब हयात मुनव्वर चश्मे साए ज़ुलफ़ अंबर दे हू
सुल्तान बाहू
शे'र
अज़ल से मुर्ग़-ए-दिल को ख़तरा-ए-सय्याद क्या होताकि उस को तो असीर-ए-हल्क़ः-ए-फ़ित्राक होना था