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शे'र
कोई मर कर तो देखे इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत मेंकि ज़ेर-ए-ख़ंजर-ए-क़ातिल हयात-ए-जावेदाँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
महबूब वारसी गयावी
शे'र
अभी तो लग न चलना था 'असर' उस गुल-बदन के साथकोई दिन देखना था ज़ख़्म-ए-दिल बे-तर्ह आला था
ख़्वाजा मीर असर
शे'र
यही ख़ैर है कहीं शर न हो कोई बे-गुनाह इधर न होवो चले हैं करते हुए नज़र कभी इस तरफ़ कभी उस तरफ़
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
तू और ज़रा मोहकम कर ले पर्दों की मुकम्मल बंदिश कोऐ दोस्त नज़र की गर्मी को हम आज शरारा करते हैं