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शे'र
ख़ुद तुम्हें ये चाँद-सा मुखड़ा करेगा बे-हिजाबमुँह पे जब मारोगे तुम झुरमुट कताँ हो जाएगा
क़द्र बिलग्रामी
शे'र
ख़ुद-साज़ी में मसरूफ़-ए-ख़ुदाई है 'सुलैमाँ'दुनिया में कोई मर्द-ए-ख़ुदा-साज़ कहाँ है
सुलैमान वारसी
शे'र
बहार आने की आरज़ू क्या बहार ख़ुद है नज़र का धोकाअभी चमन जन्नत-नज़र है अभी चमन का पता नहीं है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
रिंद हूँ ब-ख़ुदा मगर ‘बेख़ुद’ हूँ बे-ख़ुदा नहींतुम ही मेरे हो पेशवा या’नी कि ना-ख़ुदा भी तुम
बेख़ुद सुहरावरदी
शे'र
कामिल शत्तारी
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शकील बदायूँनी
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बहार आने की आरज़ू क्या बहार ख़ुद है नज़र का धोकाअभी चमन जन्नत-नज़र है अभी चमन का पता नहीं है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
ख़ुद अदा मरती है जिस पर वो अदा कुछ और हैहै वफ़ा भी जिस पे सदक़े वो जफ़ा कुछ और है
तसद्दुक़ अ’ली असद
शे'र
ख़ुदी ख़ुद-ए’तिमादी में बदल जाये तो बंदों कोख़ुदा से सरकशी करने की नौबत आ ही जाती है
फ़क़ीर क़ादरी
शे'र
मिरी तुर्बत पे ख़ुद साक़ी ने आ कर ये दुआ माँगीख़ुदा बख़्शे बहुत अच्छी गुज़ारी मय-परस्ती में
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ख़ूब-रू ख़ुद आ मिले जब फिर किसी का ख़ौफ़ क्याये वो जादू है जिसे तस्ख़ीर की हाजत नहीं
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
अब उस मंज़िल पे पहुँचा है किसी का बे-ख़ुद-ए-उल्फ़तजहाँ पर ज़िंदगी-ओ-मौत का एहसास यकसाँ है