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अहक़र बिहारी
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कब दिमाग़ इतना कि कीजे जा के गुल-गश्त-ए-चमनऔर ही गुलज़ार अपने दिल के है गुलशन के बीच
मीर मोहम्मद बेदार
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चश्मः-ए-जारी खास्सः-ए-बारी गर्द-सवारी बाद-ए-बहारीआईना-दारी फ़ख़्र-ए-सिकन्दर सल्लल्लाहो अ’लैहे-वसल्लम
अमीर मीनाई
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ख़ुदा-हाफ़िज़ है बहर-ए-इ’श्क़ में इस दिल की कश्ती काकि है चीन-ए-जबीन-ए-यार से मौज-ए-दिगर पैदा
शाह नसीर
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दवाँ हो कश्ती-ए-उ’म्र-ए-रवाँ यूँ बहर-ए-हस्ती मेंकहीं उभरी कहीं डूबी कहीं मा’लूम होती है
अफ़क़र मोहानी
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हैरान है तेरे मज़हब से सब गबरू मुसलमाँ ऐ 'अहक़र'ये उस की गली का रस्ता है पुर-ख़ौफ़ भी है पुर-ख़ार भी
अहक़र बिहारी
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वो बहर-ए-हुस्न शायद बाग़ में आवेगा ऐ 'एहसाँ'कि फ़व्वारा ख़ुशी से आज दो दो गज़ उछलता है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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नहीं आती क़ज़ा मक़्तल में ख़ौफ़-ए-तेग़-ए-क़ातिल सेइलाही ख़ैर क्यूँ-कर दम तन-ए-बिस्मिल से निकलेगा
हशम लखनवी
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नहीं आती क़ज़ा मक़्तल में ख़ौफ़-ए-तेग़-ए-क़ातिल सेइलाही ख़ैर क्यूँ-कर दम तन-ए-बिस्मिल से निकलेगा