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शे'र
अदा से हाथ उठने में गुल राखी जो हिलते हैंकलेजे देखने वालों के क्या क्या आह छिलते हैं
नज़ीर अकबराबादी
शे'र
हवस जो दिल में गुज़रे है कहूँ क्या आह मैं तुम कोयही आता है जी में बन के बाम्हन आज तो यारो
नज़ीर अकबराबादी
शे'र
कुछ भीगी तालैं होली की कुझ नाज़ अदा के ढंग भरेदिल भूले देख बहारों को और कानों में आहंग भरे
नज़ीर अकबराबादी
शे'र
वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सर-ग़श्तः-ए-तसनीम-ओ-जन्नत होमयस्सर जिस को सैर-ए-ताज और जमुना का साहिल है
सीमाब अकबराबादी
शे'र
नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगीकिसी की आख़िरी हिचकी किसी की दिल-लगी होगी
सीमाब अकबराबादी
शे'र
ख़्वाब है न बेदारी शुक्र है न होशियारीलुत्फ़-ए-लज़्ज़त-ए-कैफ़-ए-बे-ख़ुमार मुझ से पूछ
निसार अकबराबादी
शे'र
उजाला हो तो ढूँडूँ दिल भी परवानों की लाशों मेंमिरी बर्बादियों को इंतिज़ार-ए-सुब्ह-ए-महफ़िल है