परिणाम "lazzat-e-gosh"
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वो भी 'सादिक़' गोश-बर-आवाज़ हैंअब मेरी आवाज़ कुछ है तो सही
अहल-ए-महफ़िल हों न हों दिल तो मुजस्सम गोश हैक़िस्सा-ए-ग़म रात-भर 'हामिद' सुनाते जाइए
गदा को क्यूँ न सय्याही की लज़्ज़त हो कि होता हैनया दाना नया पानी नया इक और घर पैदा
इ’श्क़ के आसार हैं फिर ग़श मुझे आया देखोफिर कोई रौज़न-ए-दीवार से झाँका देखो
मैं ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होशतसव्वुर है तिरा या तू हम-आग़ोश
कभी 'आसी' से हम-आग़ोश न देखा तुझ कोअसर-ए-जज़्बः-ए-दिल-ए-अहल-ए-मोहब्बत भी नहीं
न पहुँचेगी कभी क्या गोश-ए-गुल तकक़फ़स से उड़ के फ़रियाद-ए-अनादिल
गिर पड़े ग़श खा के आ’शिक़ और मुर्दे जी उठेदो-क़दम जब वो चले ये हश्र बरपा हो गया
आप की तस्वीर हर-दम दिल से हम-आग़ोश हैया'नी वो बेहोश हूँ क़ुर्बान जिस पर होश है
पहुँच जाती है किसी के गोश-ए-दिल तकहमारी आरज़ू इतनी कहाँ है
नज़र-अफ़ज़ोई-ए-शम-ए-तजल्ली ऐ ज़हे-क़िस्मतकहाँ बज़्म-ए-जमाल उन की कहाँ परवानगी अपनी
ऐ शम-ए-दिल-अफ़रोज़ शब-तार-मोहब्बततुझ से ही है ये गर्मी-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत
दिखा मुझ को दीदार ऐ गुल-एज़ारतुझे अपने बाग़-ए-इरम की क़सम
ऐ शब-ए-फ़ुर्क़त न आई तुझ को शर्मग़ैर के घर जा के मुँह काला किया
ऐ असीरान-ए-क़फ़स आने को है फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँचार-दिन में और गुलशन की हवा हो जाएगी
ऐ बहार-ए-गुलशन-ए-नाज़-ओ-नज़ाकत हर तरफ़तेरे आने से हुई है और भी बुस्ताँ में धूम
सदक़े ऐ क़ातिल तिरे मुझ तिश्ना-ए-दीदार कीतिश्नगी जाती रही आब-ए-दम-ए-शमशीर से
मुरीद-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना हुए क़िस्मत से ऐ नासेहन झाड़ें शौक़ में पलकों से हम क्यूँ सहन-ए-मय-ख़ाना
ऐ ज़ब्त-ए-दिल ये कैसी क़यामत गुज़र गईदीवानगी में चाक गरेबान हो गया
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