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शे'र
जानता हूँ मैं कि मुझ से हो गया है कुछ गुनाहदिलरुबा या बे-दिलों से दिल तुम्हारा फिर गया
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
उधर हर वार पर क़ातिल को बरसों लुत्फ़ आया हैइधर हर ज़ख़्म ने दी है सदा-ए-आफ़रीं बरसों
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
हम ऐसे ग़र्क़-ए-दरिया-ए-गुन: जन्नत में जा निकलेतवान-ए-लत्मः-ए-मौज-ए-शफ़ाअत हो तो ऐसी हो
आसी गाज़ीपुरी
शे'र
गुनाह करता है बरमला तू किसी से करता नहीं हया तूख़ुदा को क्या मुंह दिखाएगा तू ज़रा ऐ बे-हया हया कर
फ़क़ीर मोहम्मद गोया
शे'र
गुनाह करता है बरमला तू किसी से करता नहीं हया तूख़ुदा को क्या मुंह दिखाएगा तू ज़रा ऐ बे-हया हया कर