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शे'र
कोई मस्त-ए-मय-कद: आ गया मय-ए-बे-ख़ुदी पिला गयान सदा-ए-नग़्मा-ए-दैर उठे न हरम से शोर-ए-अज़ाँ उठा
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
मोहब्बत बुत-कदे में चल के उस का फ़ैसला कर देख़ुदा मेरा ख़ुदा है या ये मूरत है ख़ुदा मेरी
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
नहीं देता जो मय अच्छा न दे तेरी ख़ुशी साक़ीप्याले कुछ हमेशा ताक़ पर रखे नहीं रहते
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
फ़स्ल-ए-बहार में तो क़ैद-ए-क़फ़स में गुज़रीछूटे जो अब क़फ़स से तो मौसम-ए-ख़िज़ाँ है
हैरत शाह वारसी
शे'र
शैदा-ए-रू-ए-गुल न हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-सर्वसय्याद के शिकार हैं इस बोसताँ में हम
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
शे'र
क़द-ए-ख़म है गरेबाँ-गीर कंठा बन के क़ातिल कामगर बे-ताबी-ए-ज़ौक़-ए-शहादत हो तो ऐसी हो
आसी गाज़ीपुरी
शे'र
जो मरने से मूए पहले उन्हें क्या ख़ौफ़ दोज़ख़ कादिल अपना नार-ए-हिजरत से जला ले जिस का जी चाहे