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इ’श्क़ की बर्बादियों को राएगाँ समझा था मैंबस्तियाँ निकलीं जिन्हें वीरानियाँ समझा था मैं
जिगर मुरादाबादी
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कामिल शत्तारी
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मैं न मानूँगा कि दी अग़्यार ने तर्ग़ीब-ए-क़त्लदुश्मनों से दोस्ती का हक़ अदा क्यूँकर हुआ
अमीर मीनाई
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मैं समझूँगा कि मेरे दाग़-ए-इस्याँ धुल गए सारेअगर आँसू तिरी चश्म-ए-तग़ाफ़ुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
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ऐ जान-ए-मन जानान-ए-मन हम दर्द-ओ-हम दरमान-ए-मनदीन-ए-मन-ओ-ईमान-ए-मन अम्न-ओ-अमान-ए-उम्मताँ
अहमद रज़ा ख़ान
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अज़ीज़ सफ़ीपुरी
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तेरी सूरत का जो आईना उसे पाता हूँ मैंअपने दिल पर आप क्या क्या नाज़ फ़रमाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
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मन पाया है उस ने दिल मेरा काबा है घर अल्लाह का हैअब खोद के उस को फिकवा दे वो बुत न कहीं बुनियाद सती
ग़ुलाम नक्शबंद सज्जाद
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जानता हूँ मैं कि मुझ से हो गया है कुछ गुनाहदिलरुबा या बे-दिलों से दिल तुम्हारा फिर गया
किशन सिंह आरिफ़
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मुज़्तर ख़ैराबादी
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अब्दुल हादी काविश
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ग़ज़ब की चाल गुलशन में चला है बाग़बाँ 'मोहसिन'इसी का ये नतीज: है कि पामाल-ए-सऊबत हूँ
शाह मोहसिन दानापुरी
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ये राज़ की बातें हैं इस को समझे तो कोई क्यूँकर समझेइंसान है पुतला हैरत का मजबूर भी है मुख़्तार भी है
अहक़र बिहारी
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ख़ुदा-हाफ़िज़ है बहर-ए-इ’श्क़ में इस दिल की कश्ती काकि है चीन-ए-जबीन-ए-यार से मौज-ए-दिगर पैदा