परिणाम "mardaan-e-hur"
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जब तुम्हीं तुम हो हर अदा मेरीफिर भला मुझ से कब जुदा हो तुम
बेदारी हो या ख़्वाब हो हर हाल में है वस्लजो साहब-ए-निस्बत हैं मगर अहल-ए-यकीं हैं
बैठे बैठे वो किया करते हैं हर गुल पे नज़रदिल-ए-आशिक़ है मगर सैर का गुलशन उन का
हर जगह जब तुम्हीं हो ग़ैर नहींदोनों-आ’लम में बरमला हो तुम
तेरे हुस्न की देख तजल्ली ऐ रश्क-ए-हूरसूरज कहूँ कि चाँद कि नूर-ए-ख़ुदा कहूँ
'मर्दां' जो कोई डूबे दरिया-ए-इश्क़ में वोछूटे ख़ुदी से अपने हुब्ब-ए-वतन से निकले
वो रहे ख़ुश हम से 'मर्दां' और कभी ना-ख़ुश रहेदिल में हम को हर अदा उन की मगर भाती रही
काम का’बा से न है ने देर सेदीन-ओ-ईमान याँ बिरादर और है
मेरा जिस्म और मिरी जाँ है वही जाँ बिल्कुलमैं कहूँ क्या कि मैं हूँ यार है अल्लाह अल्लाह
हाजियों को हो मुबारक हज-ए-ईदआ’शिक़ों का हज-ए-अकबर और है
आरज़ू हम नाख़ुदा की क्यूँ करेंअपनी कश्ती का तो अफ़सर और है
क़ब्र पर मेरी अगर फ़ातिहा पढ़ने के लिएवो जो आ जाएँ तो थर्रा उठे तुर्बत मेरी
वहशत न क़ब्र में हो तुम सामने ही रहनादस्त-ए-जुनूँ न मेरा बाहर कफ़न से निकले
देखते हैं सर्व-क़द्दों को जो हमइस में गुल-गश्त-ए-सनोबर और है
शक्ल-ए-आदम के सिवा और न भाया नक़्शासारे आ’लम में ये इज़हार है अल्लाह अल्लाह
गो हुए फ़ुर्क़त कभी तो क्या जमाल-ए-यार सेदम-ब-दम उन की मोहब्बत दिल में घर पाती रही
फिर न आया फिर के गर वो नामा-बर अच्छा हुआख़त किताबत उठ गई ऐ सीम-बर अच्छा हुआ
मिल गए बाहम ख़ुदा के फ़ज़्ल से बा'द अज़ फ़नाउस को अच्छा क्या कहें हम सर-बसर अच्छा हुआ
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