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शे'र
आ'शिक़-ए-जाँ-निसार को ख़ौफ़ नहीं है मर्ग कातेरी तरफ़ से ऐ सनम जौर-ओ-जफ़ा जो हो सो हो
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
अहक़र बिहारी
शे'र
तुझी से नक़्श-ए-नाकामी में हैं उम्मीद के जल्वेशब-ए-ग़म है क़ज़ा के भेस में मेरा मसीहा तू
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
सुकून-ए-क़ल्ब की उम्मीद अब क्या हो कि रहती हैतमन्ना की दो-चार इक हर घड़ी बर्क़-ए-बला मुझ से
हसरत मोहानी
शे'र
सितमगर तुझ से उम्मीद-ए-करम होगी जिन्हें होगीहमें तो देखना ये था कि तू ज़ालिम कहाँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
बुतों से हम हुसूल-ए-सब्र की उम्मीद क्यूँ रखेंये क्या देंगे ख़ुदा के पास से ख़ुद ना-सुबूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
अहक़र बिहारी
शे'र
अहक़र बिहारी
शे'र
हैं शौक़-ए-ज़ब्ह में आशिक़ तड़पते मुर्ग़-ए-बिस्मिल सेअजल तो है ज़रा कह आना ये पैग़ाम क़ातिल से