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शे'र
अभी तो लग न चलना था 'असर' उस गुल-बदन के साथकोई दिन देखना था ज़ख़्म-ए-दिल बे-तर्ह आला था
ख़्वाजा मीर असर
शे'र
ख़्वाब 'बेदार' मुसाफ़िर के नहीं हक़ में ख़ूबकुछ भी है तुझ को ख़बर हम-सफ़राँ जाते हैं
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
कहाँ चैन ख़्वाब-ए-अदम में था न था ज़ुल्फ़-ए-यार का ख़यालसो जगा के शोर ने मुझे इस बला में फँसा दिया