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जिगर मुरादाबादी
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ऐ 'तुराब' जब गुल-बदन के दर्द सूँ गिर्यां कियादामन-ए-गुल पर मिरा हर अश्क दुर्दाना हुआ
तुराब अली दकनी
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तुराब अली दकनी
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जहान-ए-बे-ख़ुदी में मस्ती-ए-वहदत जो ले जायेफ़रिश्ते लें क़दम मेरे वो हूँ मैं रिंद-ए-मस्तान:
इब्राहीम आजिज़
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मोहब्बत जब हुई ग़ालिब नहीं छुपती छुपाने सेफुग़ान-ओ-आह-ओ-नाला है तिरे आ’शिक़ का नक़्क़ारा
शाह तुराब अली क़लंदर
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कर गरेबाँ चाक अपना गुल नमत भुहीं पर गिरादर्द-ए-दिल बुलबुल सौं सुन कर ओ गुल-ए-ख़ंदाँ मिरा
तुराब अली दकनी
शे'र
नहीं यारो ख़ुदा हरगिज़ तुम्हारे सुँ जुदा हैगाजिधर देखे उधर ममलू सदा नूर-ए-ख़ुदा हैगा