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शे'र
हैरान है तेरे मज़हब से सब गबरू मुसलमाँ ऐ 'अहक़र'ये उस की गली का रस्ता है पुर-ख़ौफ़ भी है पुर-ख़ार भी
अहक़र बिहारी
शे'र
अहक़र बिहारी
शे'र
लैल-ओ-नहार चाहे अगर ख़ूब गुज़रे 'इ’श्क़'कर विर्द उस के नाम को तू सुब्ह-ओ-शाम का
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
उफ़-रे बाद-ए-जोश-ए-जवानी आँख न उन की उठती थीमस्ताना हर एक अदा थी हर इ’श्वा मस्ताना था
बेदम शाह वारसी
शे'र
क्या इन आहों से शब-ए-ग़म मुख़्तसर हो जाए गीये सह सेहर होने की बातें हैं सेहर हो जाए गी
क़मर जलालवी
शे'र
हुकूमत के मज़ालिम जब से इन आँखों ने देखे हैंजिगर हम बम्बई को कूचा-ए-क़ातिल समझते हैं
जिगर मुरादाबादी
शे'र
हुआ आईना से इज़हार उन का रू-ए-ज़ेबा हैबना मुम्किन है वाजिब से जो शनवा है वो गोया है