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सर-ओ-बर्ग-ए-ख़ुशी ऐ गुल-बदन तुझ बिन कहाँ मुझ कोगुलिस्तान-ए-दिल आया फ़ौज-ए-ग़म की पाएमाली में
मीर मोहम्मद बेदार
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चश्म-ए-हक़-बीं हो चुकी है शाद-काम-ए-आर्ज़ूतोड़ता है अब तिलिस्म-ए-जल्वा-ए-बातिल मुझे
पंडित शाएक़ वारसी
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मोहम्मद अकबर वार्सी
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मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा,मुझे ज़िंदगी का अलम नहींजिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
शकील बदायूनी
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तैरता है फूल बन कर बह्र-ए-ग़म में दिल मिराकिस तरह डूबे वो कश्ती जिसमें कुछ लंगर न हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
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तैरता है फूल बन कर बह्र-ए-ग़म में दिल मिराकिस तरह डूबे वो कश्ती जिसमें कुछ लंगर ना हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
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क़ल्ब-ए-मोमिन आईना है ज़ात-ए-मोमिन का ‘रज़ा’देखकर हैराँ उसे क्यों अ’क़्ल-ए-असकंदर ना हो