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शे'र
ऐ 'तुराब' जब गुल-बदन के दर्द सूँ गिर्यां कियादामन-ए-गुल पर मिरा हर अश्क दुर्दाना हुआ
तुराब अली दकनी
शे'र
सँभल जाओ चमन वालो ख़तर है हम न कहते थेजमाल-ए-गुल के पर्दे में शरर है हम न कहते थे
वासिफ़ अली वासिफ़
शे'र
वह्म है शक है गुमाँ है बाल से बारीक हैइस से बेहतर और मज़मून-ए-कमर मिलता नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
मोहब्बत जब हुई ग़ालिब नहीं छुपती छुपाने सेफुग़ान-ओ-आह-ओ-नाला है तिरे आ’शिक़ का नक़्क़ारा