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जब निगाहें उठ गईं अल्लाह री मेराज-शौक़देखता क्या हूँ वो जान-ए-इंतिज़ार आ ही गया
जब निगाहें उठ गईं अल्लाह-री मेराज-शौक़देखता क्या हूँ वो जान-ए-इंतिज़ार आ ही गया
नशीली निगाहों के मारे हुओं को बस इक बे-ख़ुदी में गुज़ारे हुओं कोतेरी मस्त-आँखों के क़ुर्बान साक़ी उन्हें साग़रों से पिलाना पड़ेगा
ये किस ने निगाहों से साग़र पिलाए ख़ुदी पर मेरी बे-ख़ुदी बनके छाएख़बरदार ऐ दिल मक़ाम-ए-अदब है, कहीं बादानोशी पे धब्बा ना आए
नाम अगर दरकार है मिस्ल-ए-नगींएक घर में जम के बैठा कीजिए
समाए हैं अपने निगाहों में ऐसेजब आईना देखा है हैराँ हुए हैं
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