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शे'र
मेरी आँख बंद थी जब तलक वो नज़र में नूर-ए-जमाल था
खुली आँख तो ना ख़बर रही कि वो ख़्वाब था कि ख़्याल था
बहादुर शाह ज़फ़र
शे'र
बाँद कर गुलनार चीरा गुल-बदन जाता है बाग़
आज ख़ातिर में तिरे बुलबुल की मिस्मारी है क्या
तुराब अली दकनी
शे'र
किया जो मुझ तरफ़ गुल-रू नज़र आहिस्ता आहिस्ता
वो पहुँची बुलबुल-ए-दिल कूँ ख़बर आहिस्ता आहिस्ता
तुराब अली दकनी
शे'र
वक़्त-ए-आराईश जो की आईना पर उसने नज़र
हुस्न ख़ुद कहने लगा इस से हसीं देखा नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
बहार आने की आरज़ू क्या बहार ख़ुद है नज़र का धोका
अभी चमन जन्नत-नज़र है अभी चमन का पता नहीं है