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‘नादिर’ फ़िराक़-ए-यार में मजनूं तो बन गयाख़ाना-बदोश बैठ कहीं तेरा घर भी है
बुलबुल को मुबारक हो हवा-ए-गुल-ओ-गुलशनपरवाने को सोज़-ए-दिल-ए-परवानः मुबारक
बुलबुल को मुबारक हो हवा-ए-गुल-ओ-गुलशनपरवाने को सोज़-ए-दिल-ए-परवाना मुबारक
हाजियों को हो मुबारक हज-ए-ईदआ’शिक़ों का हज-ए-अकबर और है
न रहा इंतिज़ार भी ऐ यासहम उमीद-ए-विसाल रखते थे
हमें तो बाग़ तुझ बिन ख़ाना-ए-मातम नज़र आयाइधर गुल फाड़ते थे जैब रोती थी उधर शबनम
ऐ निकहत-ए-गुल परी ही रह तूआना है उसी के पास मुझ को
ऐ शम-ए-दिल-अफ़रोज़ शब-तार-मोहब्बततुझ से ही है ये गर्मी-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत
ऐ बुताँ मोहतरम रखो उस कोकहते हैं ख़ाना-ए-ख़ुदा दिल को
ऐ बहार-ए-गुलशन-ए-नाज़-ओ-नज़ाकत हर तरफ़तेरे आने से हुई है और भी बुस्ताँ में धूम
गुलों की तरह चाक का ऐ बहारमुहय्या हर इक याँ गरेबान है
ऐ मियाँ गुल तो खिल चुके प कभूग़ुंचा-ए-दिल मिरा भी वा होगा
आह ऐ यार क्या करूँ तुझ बिननाला-ए-ज़ार क्या करूँ तुझ बिन
हूँ तीर-ए-बला का मैं निशान:शमशीर-ए-जफ़ा का मैं सिपर हूँ
हिजाब-ए-रुख़-ए-यार थे आप ही हमखुली आँख जब कोई पर्दा न देखा
बहार-ए-गुलशन-ए-अय्याम हूँ मैंसहर-ए-नूर व सवाद-ए-शाम हूँ मैं
बुत-ए-काफ़िर की बे-मुरव्वतियाँये हमें सब ख़ुदा दिखाता है
सर्फ़-ए-ग़म हम ने नौजवानी कीवाह क्या ख़ूब ज़िंदगानी की
देख ऐ चमन-ए-हुस्न तुझे बाग़ में ख़ंदाँशबनम नहीं ये गुल पे ख़जालत से अरक़ है
किया सैर सब हम ने गुलज़ार-ए-दुनियागुल-ए-दोस्ती में अजब रंग-ओ-बू है
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