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शे'र
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
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मंगण ईमान शरमावण इ’श्क़ोंं दिल नूँ ग़ैरत होई हूइश्क़ सलामत रक्खीं 'बाहू' देयाँ ईमान धरोई हू
सुल्तान बाहू
शे'र
जिस मंज़ूल नूँ इ’श्क़ पहुँचावे, ईमान ख़बर न कोई हूइ’श्क़ सलामत रक्खीं 'बाहू' देयाँ ईमान धरोई हू
सुल्तान बाहू
शे'र
ईमान सलामत हर कोई मंगे इ’श्क़ सलामत कोई हूजिस मंज़ल नूँ इ’श्क़ पहुँचावे ईमान ख़बर न कोई हू
सुल्तान बाहू
शे'र
ईमान सलामत हर कोई मंगे इश्क़ सलामत कोई हूमाँगण ईमान शरमावण इश्क़ोंं दिल नूँ ग़ैरत होई हू
सुल्तान बाहू
शे'र
बना कर कुफ़्र को आईना सूरत देख ईमाँ कीसनम की शक्ल में जल्वा-कुनाँ अल्लाह ही अल्लाह है
वतन हैदराबादी
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ख़बर अपनी नहीं रखते ख़बर ग़ैरों की क्या रखेंकि आ’शिक़ मा-सिवा-ए-यार से बे-ज़ार बैठे हैं
नूर बिहारी
शे'र
रहज़न-ए-ईमान तू जल्वा दिखा जाए अगरबुत पुजें मंदिर में मस्जिद में ख़ुदा की याद हो