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शे'र
उधर हर वार पर क़ातिल को बरसों लुत्फ़ आया हैइधर हर ज़ख़्म ने दी है सदा-ए-आफ़रीं बरसों
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
वो सर और ग़ैर के दर पर झुके तौबा मआ'ज़-अल्लाहकि जिस सर की रसाई तेरे संग-ए-आस्ताँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
हमारी आरज़ू दिल की तुम्हारी जुम्बिश-ए-लब परतमन्ना अब बर आती है अगर कुछ लब-कुशा तुम हो
राक़िम देहलवी
शे'र
जफ़ा-ओ-जौर के सदक़े तसद्दुक़-बर-ज़बानी परसुनाते हैं वो लाखों बे-नुक़त इस बे-दहानी पर
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
मिरा जी जलता है उस बुलबुल-ए-बेकस की ग़ुर्बत परकि जिन ने आसरे पर गुल के छोड़ा आशियाँ अपना
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
शे'र
तिरा ग़म सहने वाले पर ज़माना मुस्कुराता हैमगर हर शख़्स की क़िस्मत में तेरा ग़म नहीं होता