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शे'र
अगर चाहूँ निज़ाम-ए-दहर को ज़ेर-ओ-ज़बर कर दूँमिरे जज़्बात का तूफ़ाँ ज़मीं से आसमाँ तक है
वली वारसी
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जफ़ा-ओ-जौर के सदक़े तसद्दुक़-बर-ज़बानी परसुनाते हैं वो लाखों बे-नुक़त इस बे-दहानी पर
कौसर ख़ैराबादी
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करें आह-ओ-फ़ुग़ाँ फोड़ें-फफोले इस तरह दिल केइरादा है कि रोएँ ई’द के दिन भी गले मिल के
औघट शाह वारसी
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करें आह-ओ-फ़ुग़ाँ फोड़ें-फफोले इस तरह दिल केइरादा है कि रोएँ ई'द के दिन भी गले मिल के