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दिखाइए आज रू-ए-ज़ेबा उठाइए दरमियाँ से पर्दाकहाँ से अब इंतिज़ार-ए-फ़र्दा यही तो सुनते हैं उम्र-भर से
अहक़र बिहारी
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अब्दुल हादी काविश
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कुछ इस आ'लम में वो बे-पर्दा निकले सैर-ए-गुलशन कोकि नसरीं अपनी ख़ुश्बू रंग भोली नस्तरन अपना
हसरत मोहानी
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सदा ही मेरी क़िस्मत जूँ सदा-ए-हल्क़ा-ए-दर हैअगर मैं घर में जाता हूँ तो वो बाहर निकलता है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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ख़ुदा से डर ज़रा 'कौसर' कि तू तो खोए बैठा हैसरापा दीन-ओ-ईमान इक बुत-ए-काफ़िर की चाहत में
कौसर ख़ैराबादी
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वो सर और ग़ैर के दर पर झुके तौबा मआ'ज़-अल्लाहकि जिस सर की रसाई तेरे संग-ए-आस्ताँ तक है