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शे'र
आज तो 'क़ैसर'-ए-हज़ीं ज़ीस्त की राह मिल गईआ के ख़याल-ओ-ख़्वाब में शक्ल दिखा गया कोई
क़ैसर शाह वारसी
शे'र
हम वस्ल में ऐसे खोए गए फ़ुर्क़त का ज़माना भूल गएसाहिल की ख़ुशी में मौजों का तूफ़ान उठाना भूल गए
कामिल शत्तारी
शे'र
मैं समझूँगा कि मेरे दाग़-ए-इस्याँ धुल गए सारेअगर आँसू तिरी चश्म-ए-तग़ाफ़ुल से निकल आया