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शे'र
तेरे नैन-ए-पुर-ख़ुमार कूँ सरमस्त-ए-बादा-नाज़या बे-ख़ुदी का जाम या सहर-ए-बला कहूँ
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
तुम अपनी ज़ुल्फ़ खोलो फिर दिल-ए-पुर-दाग़ चमकेगाअंधेरा हो तो कुछ कुछ शम्अ' की आँखों में नूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
असीर-ए-गेसू-ए-पुर-ख़म बनाए पहले आशिक़ कोनिकाले फिर वो पेच-ओ-ख़म कभी कुछ है कभी कुछ है
अब्दुल हादी काविश
शे'र
अज़ीज़ वारसी देहलवी
शे'र
महबूब वारसी गयावी
शे'र
इलाही ख़ैर ज़ोरों पर बुतान-ए-पुर-ग़ुरूर आएकहीं ऐसा न हो ईमान-ए-आ’लम में फ़ुतूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
जिगर मुरादाबादी
शे'र
जफ़ा-ओ-जौर के सदक़े तसद्दुक़-बर-ज़बानी परसुनाते हैं वो लाखों बे-नुक़त इस बे-दहानी पर
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
जुनूँ ज़ाहिर हुआ रुख़ पर ख़ुदी पर बे-ख़ुदी छाईब-क़ैद-ए-होश मैं जब भी क़रीब-ए-आस्ताँ पहुँचा