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शे'र
तुम अपनी ज़ुल्फ़ खोलो फिर दिल-ए-पुर-दाग़ चमकेगाअंधेरा हो तो कुछ कुछ शम्अ' की आँखों में नूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
क्यों गुल-ए-आरिज़ पे तुमने ज़ुल्फ़ बिखराई नहींचश्मा-ए-ख़ुर्शीद में क्यों साँप लहराया नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
दिल फंसा कर ज़ुल्फ़ में ख़ुद है पशेमानी मुझेदह्र में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा कहती है ज़िंदानी मुझे
सादिक़ लखनवी
शे'र
जहाँ में ख़ाना-ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़ को क्या छोड़ देते हैंकि तुम ने छोड़ रखा मुझ असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ को
राक़िम देहलवी
शे'र
याद में उस क़द-ओ-रुख़्सार के ऐ ग़म-ज़दगाँजा के टुक बाग़ में सैर-ए-गुल-ओ-शमशाद करो
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
फ़स्ल-ए-बहार में तो क़ैद-ए-क़फ़स में गुज़रीछूटे जो अब क़फ़स से तो मौसम-ए-ख़िज़ाँ है
हैरत शाह वारसी
शे'र
क़द-ए-ख़म है गरेबाँ-गीर कंठा बन के क़ातिल कामगर बे-ताबी-ए-ज़ौक़-ए-शहादत हो तो ऐसी हो
आसी गाज़ीपुरी
शे'र
शैदा-ए-रू-ए-गुल न हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-सर्वसय्याद के शिकार हैं इस बोसताँ में हम
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
शे'र
ख़ुशी से ख़त्म कर ले सख़्तियाँ क़ैद-ए-फ़रंग अपनीकि हम आज़ाद हैं बेगानः-ए-रंज-ए-दिल-आज़ारी
हसरत मोहानी
शे'र
कहाँ चैन ख़्वाब-ए-अदम में था न था ज़ुल्फ़-ए-यार का ख़यालसो जगा के शोर ने मुझे इस बला में फँसा दिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
जिस दिन से बू-ए-ज़ुल्फ़ ले आई है अपने साथइस गुलशन-ए-जहाँ में हुआ हूँ सबा-परस्त