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शे'र
मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा,मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं
जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
शकील बदायूँनी
शे'र
पढ़ पढ़ इ’ल्म हज़ार कताबाँ आ’लिम होए भारे हू
हर्फ़ इक इ’श्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू
सुल्तान बाहू
शे'र
आज तो 'क़ैसर'-ए-हज़ीं ज़ीस्त की राह मिल गई
आ के ख़याल-ओ-ख़्वाब में शक्ल दिखा गया कोई
क़ैसर शाह वारसी
शे'र
मिरे आँसुओं के क़तरे हैं चराग़-ए-राह-ए-मंज़िल
उन्हें रौशनी मिली है तपिश-ए-दिल-ओ-जिगर से