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शे'र
'आरिफ़ा' है हक़ यही बस ग़ैर-ए-हक़ कुछ भी न जानपी मय-ए-वहदत यहाँ ताख़ीर की हाजत नहीं
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
कश्ती है सुकूँ की मौजों में इतना ही सहारा काफ़ी हैमेरे लिए तो ऐ जान-ए-जहाँ बस नाम तुमहारा काफ़ी है
शाह तक़ी राज़ बरेलवी
शे'र
ख़ुदा शाहिद है इस शम्‘अ-ए-फ़रौज़ाँ की ज़िया तुम होमैं हरगिज़ ये नहीं कहता तुमहें मेरे ख़ुदा तुम हो
शाह तक़ी राज़ बरेलवी
शे'र
ये राज़ की बातें हैं इस को समझे तो कोई क्यूँकर समझेइंसान है पुतला हैरत का मजबूर भी है मुख़्तार भी है
अहक़र बिहारी
शे'र
ख़्वाब 'बेदार' मुसाफ़िर के नहीं हक़ में ख़ूबकुछ भी है तुझ को ख़बर हम-सफ़राँ जाते हैं
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
ये नर्म-ओ-नातवाँ मौजें ख़ुदी का राज़ क्या जानेंक़दम लेते हैं तूफ़ाँ अज़्मत-ए-साहिल समझते हैं
जिगर मुरादाबादी
शे'र
क्यूँ-कर न क़ुर्ब-ए-हक़ की तरफ़ दिल मिरा कीजिएगर्दन असीर-ए-हल्क़ा-ए-हबल-उल-वरीद है
बेदम शाह वारसी
शे'र
कहीं है अ’ब्द की धुन और कहीं शोर-ए-अनल-हक़ हैकहीं इख़्फ़ा-ए-मस्ती है कहीं इज़हार-ए-मस्ती है