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शे'र
मिरे आँसुओं के क़तरे हैं चराग़-ए-राह-ए-मंज़िलउन्हें रौशनी मिली है तपिश-ए-दिल-ओ-जिगर से
जौहर वारसी
शे'र
अब उस मंज़िल पे पहुँचा है किसी का बे-ख़ुद-ए-उल्फ़तजहाँ पर ज़िंदगी-ओ-मौत का एहसास यकसाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
हर क़दम के साथ मंज़िल लेकिन इस का क्या इ’लाजइ’श्क़ ही कम-बख़्त मंज़िल-आश्ना होता नहीं
जिगर मुरादाबादी
शे'र
हर ज़र्रा उस की मंज़िल सहरा हो या हो गुलशनक्यूँ बे-निशाँ रहे वो तेरा जो बे-निशाँ है
हैरत शाह वारसी
शे'र
आज तो 'क़ैसर'-ए-हज़ीं ज़ीस्त की राह मिल गईआ के ख़याल-ओ-ख़्वाब में शक्ल दिखा गया कोई
क़ैसर शाह वारसी
शे'र
जुज़ तेरे नहीं ग़ैर को रह दिल के नगर मेंजब से कि तिरे इश्क़ का याँ नज़्म-ओ-नसक़ है
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
गूढ़ ज़ुल्मात अंधेर ग़ुबाराँ राह ने ख़ौफ़ ख़तर दे हूआब हयात मुनव्वर चश्मे साए ज़ुलफ़ अंबर दे हू