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तैरता है फूल बन कर बह्र-ए-ग़म में दिल मिराकिस तरह डूबे वो कश्ती जिसमें कुछ लंगर न हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
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तैरता है फूल बन कर बह्र-ए-ग़म में दिल मिराकिस तरह डूबे वो कश्ती जिसमें कुछ लंगर ना हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
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क़ाबू में दिल-ए-नाकाम रहे राज़ी-ब-रज़ा इंसान रहेहंगाम-ए-मुसीबत घबराना इक तर्ह की ये नादानी है
अहक़र बिहारी
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साँस में आवाज़-ए-नय है दिल ग़ज़ल-ख़्वाँ है 'ज़हीन'शायद आने को है वो जान-ए-बहाराँ इस तरफ़
ज़हीन शाह ताजी
शे'र
जो दिल हो जल्वा-गाह-ए-नाज़ इस में ग़म नहीं होताजहाँ सरकार होते हैं वहाँ मातम नहीं होता
कामिल शत्तारी
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जो दिल हो जल्वा-गाह-ए-नाज़ इस में ग़म नहीं होताजहाँ सरकार होते हैं वहाँ मातम नहीं होता
कामिल शत्तारी
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ख़ुदा-हाफ़िज़ है बहर-ए-इ’श्क़ में इस दिल की कश्ती काकि है चीन-ए-जबीन-ए-यार से मौज-ए-दिगर पैदा
शाह नसीर
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ग़म-ए-जानाँ से दिल मानूस जब से हो गया मुझ कोहँसी अच्छी नहीं लगती ख़ुशी अच्छी नहीं लगती
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
ग़म-ए-जानाँ से दिल मानूस जब से हो गया मुझ कोहँसी अच्छी नहीं लगती ख़ुशी अच्छी नहीं लगती
पुरनम इलाहाबादी
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ग़म-ए-जानाँ से दिल मानूस जब से हो गया मुझ कोहँसी अच्छी नहीं लगती ख़ुशी अच्छी नहीं लगती