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शे'र
जुब्बः-साई जिस से की क़िस्मत चमक उठी 'रियाज़'हज़रत-ए-'साहिर' के दर से क्यूँ हमारा सर उठे
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
ग़म-ए-फ़ुर्क़त है खाने को शब-ए-ग़म है तड़पने कोमिला है हम को वो जीना कि मरना इस को कहते हैं