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शे'र
इ’श्क़ ने तोड़ी सर पे क़यामत ज़ोर-ए-क़यामत क्या कहिएसुनने वाला कोई नहीं रूदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए
जिगर मुरादाबादी
शे'र
जो अ’ज़्म-ए-क़त्ल है आँखों पे पट्टी बाँध ली क़ातिलमबादा तुझ को रहम आ जाए मेरी ना-तवानी पर
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा,मुझे ज़िंदगी का अलम नहींजिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
शकील बदायूँनी
शे'र
क्यों गुल-ए-आरिज़ पे तुमने ज़ुल्फ़ बिखराई नहींचश्मा-ए-ख़ुर्शीद में क्यों साँप लहराया नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
मेरे अ'र्ज़-ए-ग़म पे वो कहना किसी का हाए हाएशिकवा-ए-ग़म शेवा-ए-अहल-ए-वफ़ा होता नहीं
जिगर मुरादाबादी
शे'र
साग़र शराब-ए-इ'श्क़ का पी ही लिया जो हो सो होसर अब कटे या घर लुटे फ़िक्र ही क्या जो हो सो हो
अब्दुल हादी काविश
शे'र
अब उस मंज़िल पे पहुँचा है किसी का बे-ख़ुद-ए-उल्फ़तजहाँ पर ज़िंदगी-ओ-मौत का एहसास यकसाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
अमीर मीनाई
शे'र
दिल बुझा जाए है अग़्यार की शोरिश पे मिरासर्द करती है तिरी गर्मी-ए-बाज़ार मुझे