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जब तुम्हीं तुम हो हर अदा मेरीफिर भला मुझ से कब जुदा हो तुम
काम का’बा से न है ने देर सेदीन-ओ-ईमान याँ बिरादर और है
मेरा जिस्म और मिरी जाँ है वही जाँ बिल्कुलमैं कहूँ क्या कि मैं हूँ यार है अल्लाह अल्लाह
हाजियों को हो मुबारक हज-ए-ईदआ’शिक़ों का हज-ए-अकबर और है
बेदारी हो या ख़्वाब हो हर हाल में है वस्लजो साहब-ए-निस्बत हैं मगर अहल-ए-यकीं हैं
आरज़ू हम नाख़ुदा की क्यूँ करेंअपनी कश्ती का तो अफ़सर और है
'मर्दां' जो कोई डूबे दरिया-ए-इश्क़ में वोछूटे ख़ुदी से अपने हुब्ब-ए-वतन से निकले
क़ब्र पर मेरी अगर फ़ातिहा पढ़ने के लिएवो जो आ जाएँ तो थर्रा उठे तुर्बत मेरी
बड़ी चीज़ आँख है इंसान पहले आँख पहचानेनज़र का ताड़ जाना भी तो आधी 'ऐब दानी है
वहशत न क़ब्र में हो तुम सामने ही रहनादस्त-ए-जुनूँ न मेरा बाहर कफ़न से निकले
वो रहे ख़ुश हम से 'मर्दां' और कभी ना-ख़ुश रहेदिल में हम को हर अदा उन की मगर भाती रही
बैठे बैठे वो किया करते हैं हर गुल पे नज़रदिल-ए-आशिक़ है मगर सैर का गुलशन उन का
लब पर फ़ुग़ाँ न आँख में आँसू दिल में दर्दमैं क्या करूँ ज़माना अगर क़द्र-दाँ है अब
देखते हैं सर्व-क़द्दों को जो हमइस में गुल-गश्त-ए-सनोबर और है
हर जगह जब तुम्हीं हो ग़ैर नहींदोनों-आ’लम में बरमला हो तुम
शक्ल-ए-आदम के सिवा और न भाया नक़्शासारे आ’लम में ये इज़हार है अल्लाह अल्लाह
गो हुए फ़ुर्क़त कभी तो क्या जमाल-ए-यार सेदम-ब-दम उन की मोहब्बत दिल में घर पाती रही
मिल गए बाहम ख़ुदा के फ़ज़्ल से बा'द अज़ फ़नाउस को अच्छा क्या कहें हम सर-बसर अच्छा हुआ
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